
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल पर गुरुवार को भ्रष्टाचार का मुक़दमा दर्ज कर दिया गया है।
मामला सीधा है — योगगुरु रामदेव की पतंजलि को निर्धारित सीमा से बाहर ज़मीन बेचने और अदला-बदली की अनुमति देने का आरोप है।
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नेपाल की CIAA (The Commission for the Investigation of Abuse of Authority) ने इस केस में 93 अन्य लोगों को भी आरोपी बनाया है, जिनमें पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ नौकरशाह शामिल हैं।
सत्ता से कट, संसद से बाहर – बिना बहस, बिना वॉकआउट!
भ्रष्टाचार का केस दर्ज होते ही माधव कुमार नेपाल की सांसद सदस्यता स्वतः निलंबित कर दी गई। जी हाँ, बिना हंगामे, बिना स्पीकर की ‘भावनात्मक अपील’, और बिना किसी “मैंने कुछ नहीं किया” प्रेस कॉन्फ्रेंस के।
नेपाल के क़ानून कहते हैं — “अगर अभियुक्त हो, तो संसद नहीं!”
योग के नाम पर ज़मीन, नीति की नापाक डील?
2010 में प्रधानमंत्री रहते हुए माधव कुमार ने पतंजलि को छूट के तहत बड़ी मात्रा में ज़मीन आवंटित की थी — योग केंद्र, हर्बल खेती, अस्पताल, आदि उद्देश्यों के लिए।
कहने को यह विकास के लिए था, लेकिन अब उसी ज़मीन पर जांच की जड़ें जम गई हैं।
रामदेव भले ही आसन में निष्कलंक दिखें, लेकिन इस ‘भूमि योग’ का असर पूर्व प्रधानमंत्री की कुर्सी और साख दोनों को खिसका गया है।
अब भारत की तरफ नज़र घुमाएं — यहाँ “दागी” अभी भी “माननीय” हैं!
नेपाल की न्यायिक और संवैधानिक सक्रियता देखकर एक भारतीय नागरिक का दिल कह उठता है —
“काश! हमारे यहाँ भी ऐसे नियम होते…”
भारत में तो संसद और विधानसभाओं में घोटालों के दागी ही नीति और नैतिकता पर भाषण दे रहे होते हैं। कोई ज़मानत पर है, कोई CBI की नजर में, फिर भी VIP गेट से प्रवेश और टीवी डिबेट में स्याही से ज़्यादा सफेदी दिखाते हैं।
सवाल ये नहीं कि नेपाल ने क्या किया — असली सवाल ये है कि भारत क्यों नहीं करता?
जब नेपाल जैसे छोटे देश में एक पूर्व प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार में फंसते ही बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है, तो भारत में MPs और MLAs पर चार्जशीट होते हुए भी क्यों ‘लोकतंत्र का गहना’ बने रहते हैं?
क्या भारत में संसद की सदस्यता अपराध का प्रमाणपत्र मिलने तक सुरक्षित रहती है?
या फिर संविधान में ‘संवेदना’ की जगह ‘सुविधा’ ने ले ली है?
लोकतंत्र की सफाई में ‘सिस्टम योग’ की ज़रूरत
नेपाल ने दिखाया कि कानून सभी पर लागू होता है – चाहे वह पूर्व प्रधानमंत्री हो या वर्तमान अधिकारी। भारत को भी अब “रिफॉर्म्स के सूर्य नमस्कार” शुरू करने होंगे, जहां
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“भ्रष्टाचार के आरोप” पर तुरंत कार्रवाई,
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और “लोकतांत्रिक ज़िम्मेदारी” की असली पहचान हो।
वरना हमारा लोकतंत्र भी सांस रोकने वाले प्राणायाम की तरह हो जाएगा — दिखेगा बहुत शांत, अंदर ही अंदर गड़बड़।
गांधी बिक रहे हैं, सवाल यह है कि खरीदेगा कौन? राहुल जाएंगे खरीदने!!